जय महावीर, जय महावीर जो पर-पीड़ा मन में धारे, वो नयन नीर हो जाएगा जो नैनों की भाषा समझा, अनकही पीर हो जाएगा जो जीवन के व्यामोह मोह को , तज कर दृग गंगाजल से तन-मन को तीर्थ बना लेगा, वो महावीर हो जाएगा