हो काल-गति से परे चिरंतन अभी वहाँ थे, अभी यहाँ हो, कभी धरा पर, कभी गगन में, कभी कहाँ थे, कभी कहाँ हो, तुम्हारी राधा को भान हैं तुम सकल चराचर में हो समायें, बस एक मेरा हैं भाग्य मोहन कि जिसमें हो कर भी तुम नही हो.