न द्वारका में मिले विराजे, बिरज की गलियों में भी नही हो, न योगियों के हो ध्यान में तुम, अहं जड़े ज्ञान में नही हो, तुम्हें ये जग ढूढ़ता है मोहन, मगर इसे ये ख़बर नही हैं, बस एक मेरा है भाग्य मोहन, अगर कहीं हो तो तुम यही हो.